जब में था तब हरी नहीं, अब हरी है में नाहि |
सब अँधियारा मिट गया, जब दीपक देखया माहि || बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर || बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोए | जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोए || गुरु गोविन्द दोहु खड़े, काके लांगू पाँय | बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताये || सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय सात समुंदर की मसि करूँ, गुरुगुण लिखा न जाय ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय | औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय || निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय | बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाव || बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोए | जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोए || दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख कहे को होय || माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंधे मोहे | एक दिन ऐसा आयेगा, में रोंधुगी तोहे || चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोये | दो पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोए || मलिन आवत देख के, कलियन करे पुकार | फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार || काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | पल में पर्लय होएगी, बहुरि करेगा कब || पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए | ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए || साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय | में भी भूका ना रहू, साधू न भूखा जाय || लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट | पाछे पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छूट || माया मरी ना मन मारा, मर मर गए शरीर | आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ||